निवेश करने का परिचय

एक सीमा आदेश क्या है

एक सीमा आदेश क्या है
कोर्ट के आदेश के अनुसार सार्वजनिक या निजी संपत्ति पर आवाज करने वाले कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की आवाज 55 डेसिबल होगी तभी उसे चलाने की अनुमति राज्‍य सरकार दे सकती है। जिस तरह के लाउडस्पीकर मंदिरों और मस्जिदों में लगे होते हैं, उनसे करीब 100 से 120 डेसिबल साउंड पैदा होता है जो सीधा-सीधा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्‍लंघन है।
Rules Over Loudspeakers: यूपी में लगाना है लाउडस्पीकर तो क्या हैं नियम, कहां करें संपर्क, समझें पूरी प्रक्रिया
अगर कहीं निर्माण कार्य हो रहा है तो 75 डेसिबल से अधिक तक के शोर को अनुमति दी सकती है। विस्फोटक पर डेसिबल का उल्‍लेख करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा क‍ि बॉक्‍स पर यह लिखा हो क‍ि इसके अंदर का पटाखा क‍ितना ध्‍वनि प्रदूषण करेगा।

Loudspeaker controversy: क‍ितना लाउड हो स्‍पीकर, क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश जिसका हवाला दे रहे राज ठाकरे?

राज ठाकरे ने अपने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में कहा क‍ि राज्‍य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का पालन कराना चाह‍िए जिसमें आदेश दिया है क‍ि 45 से 55 डेसिबल तक की आवाज की ही छूट है। मतलब लाउडस्‍पीकर की आवाज की सीमा इतनी ही होनी चाह‍िए। क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश जिसकी बात राज ठाकरे कर रहे हैं और ये डेसिबल (What is Decibel) क्‍या होता है ?

हाइलाइट्स

  • क‍ितना तेज हो साउंड, सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश 2005 में आदेश
  • आदेश के अनुसार आवाज से किसी को दिक्‍कत नहीं होनी चाह‍िए
  • अलग-अलग समय और जगहों के लिए तय है आवाज की सीमा

मुंबई: लाउडस्‍पीकर (Loudspeaker) पर बवाल दिन ब दिन लाउड ही हो जाता रहा। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्‍यक्ष राज ठाकरे (Raj Thackeray) ने ऐलान किया था क‍ि बुधवार 4 मई को मनसे कार्यकर्ता हर मस्‍जिद के सामने उससे दोगुनी आवाज पर हनुमान चालीसा (Hanuman chalisa) का पाठ करेंगे। कई जगह ऐसा किया भी गया। सैकड़ों मनसे कार्यकताओं को ह‍िरासत में ले लिया गया। इसके बाद राज ठाकरे ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस की एक सीमा आदेश क्या है और सरकार को चेतावनी के देते हुए कहा क‍ि जब तक मस्‍जिदों से लाउडस्‍पीकर पर अजान दी जाएगी तब तक दोगुनी आवाज में हनुमान चालीसा को पाठ करेंगे।

राज ठाकरे ने अपनी पीसी के दौरान कहा क‍ि धर्म व्‍यक्‍तिगत मुद्दा है। ये सबके घर में रहना चाह‍िए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में 45 से 55 डेसिबल (Decibel) तक की आवाज की ही छूट है। यानी हम अपने घर में जो मिक्‍सर चलाते हैं, बस उतनी आवाज की ही छूट है। इस आदेश पर मुंबई पुलिस ने क्‍या किया? आख‍िर सुप्रीम कोर्ट उस आदेश में क्‍या लिखा है जिसका हवाला राज ठाकरे बार-बार दे रहे?

पहले आसान भाषा में डेसिबल को समझ लेते हैं
ध्वनि की मात्रा को मापने की यूनिट को डेसिबल (dB) कहते हैं। ज्‍यादा आवाज मतलब ज्‍यादा डेसिबल। कई रिपोर्ट में दावा किया जाता है क‍ि अच्छी नींद के लिए आसपास रहने वाला शोर 35 डेसिबल से ज्यादा ना हो और दिन के समय 45 डेसिबल तक ही हो। इससे ज्‍यादा होने पर स्‍वास्‍थ्‍य पर असर पड़ता है।

decible scale

मोटर कार, बस, मोटर साइकिल, स्कूटर, ट्रक आद‍ि का साउंड लेवल लगभग 90 डेसिबल त‍क होता है। इसी तरह सायरन एक सीमा आदेश क्या है की साउंड लेवल 150 डेसिबल तक होता है। जब हम किसी के कान में बात करते हैं तब आवाज का लेवल लगभग 20 डेसिबल होता है। मंदिर और मस्‍जिद में लगे लाउडस्पीकर की आवाज का स्‍तर लगभग 100 से 120 डेसिबल तक होता है। पटाखे लगभग 100 से 110 डेसिबल आवाज पैदा करते हैं। फ्रिज से आने वाली आवाज 40 डेसिबल होती है। डॉक्‍टर कहते हैं क‍ि 85 डेसिबल से ज्‍यादा आवाज आपको बहरा बना सकता है।

supreme court noise pollution

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी जिसमें कहा गया क‍ि आवाज से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए।

कितना लाउड हो स्‍पीकर, क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
लाउडस्‍पीकर की आवाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं। पहला आदेश 18 जुलाई 2005 का है तो दूसरा 28 अक्‍टूबर 2005 का। ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई, 2005 का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती। कोर्ट ने आगे कहा क‍ि किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

decibels noise

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी जिसमें साउंड सीमा का जिक्र है।

अक्टूबर 2005 वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि त्योहारों के मौके पर आधी रात तक लाउडस्पीकर बजाए जा सकते हैं। लेकिन ऐसा एक साल में 15 दिन से ज्‍यादा नहीं हो सकता। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी और न्यायमूर्ति अशोक भान की पीठ ने एक वैधानिक नियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इसी आदेश में एक सीमा आदेश क्या है यह भी कहा गया था क‍ि लाउडस्पीकर या ऐसी कोई आवाज करने वाली चीज रात 10.00 बजे से सुबह 6.00 बजे के बीच बंद रहेगी। फिर वाहे वह सभागार, सम्मेलन कक्ष, सामुदायिक हॉल और बैंक्वेट हॉल हो।

18 जुलाई 2005 को आदेश में सुप्रीम कोर्ट एक सीमा आदेश क्या है ने आवाज को लेकर कुछ मानक तय किये। कोर्ट ने आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज उस क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से 10 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी या फिर 75 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी, इनमें से जो भी कम होगा वही लागू माना जाएगा। जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो, वहां लाउडस्पीकर व उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रविधन करे।

कोर्ट के आदेश के अनुसार सार्वजनिक या निजी संपत्ति पर आवाज करने वाले कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की आवाज 55 डेसिबल होगी तभी उसे चलाने की अनुमति राज्‍य सरकार दे सकती है। जिस तरह के लाउडस्पीकर मंदिरों और मस्जिदों में लगे होते हैं, उनसे करीब 100 से 120 डेसिबल साउंड पैदा होता है जो सीधा-सीधा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्‍लंघन है।
Rules Over Loudspeakers: यूपी में लगाना है लाउडस्पीकर तो क्या हैं नियम, कहां करें संपर्क, समझें पूरी प्रक्रिया
अगर कहीं निर्माण कार्य हो रहा है तो 75 डेसिबल से अधिक तक के शोर को अनुमति दी सकती है। विस्फोटक पर डेसिबल का उल्‍लेख करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा क‍ि बॉक्‍स पर यह लिखा हो क‍ि इसके अंदर का पटाखा क‍ितना ध्‍वनि प्रदूषण करेगा।

क्या कहता है कानून
देश में ते आवाज को लेकर कानून भी है। इसे वर्ष 2000 में बनाया गया और नाम दिया गया बने ध्वनि प्रदूषण (अधिनियम और नियंत्रण)। कानून की पांचवीं धारा लाउडस्पीकर्स और सार्वजनिक स्थानों पर आवाज के स्तर को लेकर बात करता है। इसके साफ-साफ कहा गया है क‍ि किसी भी सार्वजनिक स्‍थान पर आवाज वाले आयोजन के लिए प्रशासन से लिख‍ित मंजूरी लेनी होगी। इसके अलावा रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीक नहीं बजा सकते। निजी और सार्वजनिक जगहों पर लाउडस्पीकर के आवाज की सीमा 10 और 5 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए।

यूपी में धार्मिक स्थलों से उतारे गए 54 हजार अवैध लाउडस्पीकर, 60 हजार से ज्यादा की आवाज पर लगी लगाम
इसी तरह वह जगह जहां आबादी रहती है, वहां साउंड की सीमा सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 55 डेसिबल तो रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसिबल तक ही होना चाह‍िए। व्यावसायिक क्षेत्र में ज्‍यादा से ज्‍यादा 65 से 75 डेसिबल तक साउंड हो सकता है। अगर एक सीमा आदेश क्या है इस कानून का पालन न किया जाये तो कानून में पांच साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। देश के अलग-अलग राज्यों ने क्षेत्रों के अनुसार साउंड की सीम तय कर रखी है। लेकिन कहीं भी ये सीमा 70 डेसिबल से अधिक नहीं है।

मध्य प्रदेश सरकारी नौकरी में आयु सीमा में छूट का आदेश - age limit Relaxation Order in MP government jobs

मध्य प्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग मंत्रालय, वल्लभ भवन भोपाल द्वारा सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए निर्धारित अधिकतम आयु सीमा में छूट का आदेश जारी कर दिया गया है। इससे पहले सीएम शिवराज सिंह चौहान ने केवल MPPSC के लिए इसकी घोषणा की थी परंतु उनकी घोषणा के साथ ही सभी शासकीय सेवाओं में आयु सीमा में छूट का प्रश्न स्वाभाविक रूप से उपस्थित हो गया था।

मध्यप्रदेश के राज्यपाल के नाम से तथा आदेशानुसार (शैलबाला ए. मार्टिन) अपर सचिव मध्यप्रदेश शासन सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा आदेश क्रमांक एफ 07-46 / 2021 / आ.प्र. / एक दिनांक 18 सितंबर 2022 जारी किया गया है जिसमें शासन के समस्त विभाग, समस्त विभागाध्यक्ष, समस्त संभागायुक्त, समस्त कलेक्टर, समस्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी, जिला पंचायत को बताया गया है कि इस विभाग के संदर्भित परिपत्र (विभागीय परिपत्र क्रमांक सी-3-8 /2016/1 / 3 भोपाल दिनांक 04 जुलाई 2019) द्वारा राज्य शासन की सेवाओं में सीधी भर्ती से भरे जाने वाले पदों पर नियुक्तियों के लिये अधिकतम आयु सीमा संबंधी निर्देश जारी किये गये है।

कोविड-19 के कारण विगत तीन वर्षों से भर्ती परीक्षाएं नियमित आयोजित नहीं की जा सकी हैं, अतः अभ्यार्थियों के हितो को ध्यान में रखते हुए राज्य शासन दिसम्बर 2023 तक अभ्यार्थियों की अधिकतम आयु सीमा में तीन वर्षों की छूट भरे जाने वाले पदों के संबंध में जारी प्रथम विज्ञापन में प्रदान करता है।

अगला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे आरोपी जनप्रतिनिधि! पटना हाईकोर्ट के इस आदेश ने बढ़ाई टेंशन, जानें क्या है मामला

पटना हाईकोर्ट ने माननीयों से संबंधित मामलों की सुनवाई की समय सीमा तय कर दी है। साथ ही सभी मुकदमों की सुनवाई में तेजी लाने का आदेश राज्य सरकार सहित सभी निचली अदालतों को दिया है। यही नहीं एमपी-एमएलए.

अगला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे आरोपी जनप्रतिनिधि! पटना हाईकोर्ट के इस आदेश ने बढ़ाई टेंशन, जानें क्या है मामला

पटना हाईकोर्ट ने माननीयों से संबंधित मामलों की सुनवाई की समय सीमा तय कर दी है। साथ ही सभी मुकदमों की सुनवाई में तेजी लाने का आदेश राज्य सरकार सहित सभी निचली अदालतों को दिया है। यही नहीं एमपी-एमएलए कोर्ट को भी उनके यहां लंबित मामलों में तेजी लाने और कार्रवाई करने का आदेश दिया है। साथ ही कार्रवाई की रिपोर्ट हाईकोर्ट को भेजने को कहा है।

मुख्य न्यायाधीश संजय एक सीमा आदेश क्या है करोल तथा न्यायमूर्ति एस. कुमार की खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर मामले पर सुनवाई की। कोर्ट ने राज्य के डीजीपी को जनप्रतिनिधियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी का अनुसंधान सहित अन्य कार्रवाई में तेजी लाने को कहा। महानिबंधक को सभी एमपी-एमएलए कोर्ट से उनके यहां लंबित केसों पर की गई कार्रवाई की पूरी रिपोर्ट तलब कर कोर्ट को देने का आदेश दिया।

अगली सुनवाई में डीजीपी को की गई कार्रवाई के बारे में शपथपत्र दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 11 अप्रैल तय की है। न्यायिक जानकारों का मानना है कि गंभीर आरोप वाले केस में जनप्रतिनिधियों पर गाज गिरनी तय है। सजा होने पर राज्य के कई जनप्रतिनिधि अगला चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

268 केस साक्ष्य के लिए लंबित

अभी सूबे के जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कुल 598 मुकदमों में से 520 में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है। 78 केस अनुसंधान के लिए लंबित हैं, जबकि 7 केस संज्ञान के स्तर पर लंबित हैं। 156 केस उपस्थिति के लिए हैं। वहीं, 20 केस में पुलिस पेपर देने तो 16 केसों में आरोप का गठन किया जाना है। 268 केस साक्ष्य के एक सीमा आदेश क्या है लिए लंबित हैं तो एक केस कमिटमेंट के लिए लंबित है। पांच केस अभियुक्त के बयान के लिए लंबित है तो 4 बचाव पक्ष की गवाही के लिए। सात मामले बहस के स्तर पर लंबित हैं, जबकि 35 अन्य कारणों से निचली अदालतों में लंबित चल रहे हैं।

विजय प्रकाश मामले में फैसला चार सप्ताह में

विजय प्रकाश एवं अन्य का केस फैसला के स्तर पर लंबित है। सबसे पहले कोर्ट ने इसी मामले में चार सप्ताह के भीतर फैसला देने का आदेश एडीजे को दिया है। वहीं, बहस के लिए लंबित सातों केस पर चार सप्ताह के भीतर बहस की प्रक्रिया पूरी कर लेने का आदेश दिया है। कोर्ट ने बचाव पक्ष की गवाही प्रक्रिया भी चार सप्ताह के भीतर पूरी कर लेने को कहा है, जबकि अभियुक्त के बयान के लिए लंबित पांच केसों में चार सप्ताह के अंदर अभियुक्तों का बयान कलमबंद कर तीन माह में ट्रायल प्रक्रिया पूरी करने का आदेश दिया है। साक्ष्य के लिए लंबित सभी 268 केसों में प्रत्येक दिन सुनवाई करने को कहा है।

लंबित केसों पर दो सप्ताह के भीतर आरोप गठित

कोर्ट ने आरोप गठन को लेकर लंबित केसों में दो सप्ताह के भीतर आरोप गठित करने का आदेश दिया है, जबकि चार सप्ताह के भीतर पुलिस पेपर देने का काम पूरा कर लेने को कहा है। संज्ञान के लिए लंबित सभी केसों पर चार सप्ताह के भीतर संज्ञान प्रक्रिया को पूरा करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने उपस्थिति के लिए लंबित 156 केसों पर जल्द से जल्द उपस्थिति की प्रक्रिया पूरी करने को कहा है।

कई जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर लग जाएगा ग्रहण

राज्य के कई जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कुल 598 प्राथमिकी दर्ज हैं। इसमें धरना प्रदर्शन में शांति भंग से लेकर गंभीर आरोप तक हैं। न्यायिक सुनवाई में शामिल अधिवक्ताओं का कहना है कि गंभीर आरोप के कई मामलों में सुनवाई तय है। सजा होने पर उन जनप्रतिनिधियों के चुनाव लड़ने पर रोक लग सकती है।

एक सीमा आदेश क्या है

दलहन पर भंडारण की सीमा से लग सकता है किसानों की आय को बड़ा झटका

वर्ष 2015 के बाद दूसरी बार दलहनों की भंडारण सीमा सरकार ने तय की है। कीमतों को स्थिर रखने वाले इस आदेश से बीते वर्ष प्याज किसानों की तरह दलहन किसानों को भी घाटा उठाना पड़ सकता है।

By Vivek Mishra

On: Wednesday 07 July 2021

देश में दशकों से तुअर (अरहर) और उड़द पैदा करने वाले किसान उपज और कीमतों को लेकर हतोत्साहित हैं। वहीं, आवश्यक वस्तु से जुड़े कानूनों में फेरबदल और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद केंद्र सरकार अब आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के प्रावधानों से अलग जाकर तत्काल प्रभाव वाले आदेश जारी कर रही है। सरकार का अभी ताजा आदेश दलहन की स्टॉक सीमा को लेकर है जिसका विरोध जारी है। जानकारों के मुताबिक खाद्यान्न महंगाई से अब तक बची हुई तुअर और उड़द की दाल पर इस तरह की सीमा से दलहन किसानों को बड़ा झटका लग सकता है।

सरकार ने इस आदेश को विशिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसेंसी अपेक्षाएं, स्टॉक सीमाएं और संचलन प्रतिबंध हटाना (संशोधन) आदेश, 2021 नाम दिया है।

वर्ष 2015 दालों की ऊंची कीमतों और अंतरराष्ट्रीय स्तर की जमाखोरी के मामले में जाना जाता है। इसी वर्ष सरकार ने पहली बार दलहन की स्टॉक सीमा तय की थी। 2015, सितंबर में तुअर की कीमत 176 रुपए और उड़द की कीमत 190 रुपए तक पहुंची। 18 अक्तूबर, 2015 को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों से अलग स्टॉक सीमा तय की गई थी।

बहरहाल केंद्र सरकार ने 2015 के बाद अब दूसरी बार आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने के नाम पर दाल के भंडारण के लिए थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों की एक सीमा तय की है।

केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने 2 जुलाई 2021 से तत्काल प्रभाव से जारी किए गए खाद्य पदार्थ (संशोधन) आदेश, 2021 में कहा है कि सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मूंग को छोड़कर सभी दालों के लिए 31 अक्टूबर 2021 तक के लिए स्टॉक सीमा निर्धारित की गई है।

आदेश के तहत थोक विक्रेताओं के लिए ये स्टॉक सीमा 200 मीट्रिक टन (बशर्ते एक किस्म की दाल 100 मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं होनी चाहिए)। खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन और मिल मालिकों के लिए ये सीमा उत्पादन के अंतिम 3 महीनों या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, वो होगी।

वहीं, आयातकों के लिए ये स्टॉक सीमा 15 मई 2021 से पहले रखे गए/ आयात किए गए स्टॉक के लिए किसी थोक व्यापारी के समान ही होगी और 15 मई 2021 के बाद आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं पर लागू स्टॉक सीमा सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों के बाद लागू होगी।

आदेश में ये भी कहा गया है कि अगर संस्थाओं का स्टॉक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग में इसकी जानकारी देनी होगी और इस आदेश की अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के अंदर निर्धारित सीमा के भीतर लाना होगा।

इस आदेश पर ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि खाद्य महंगाई दलहन में नहीं चल रही है। किसानों को अरहर और उड़द में तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दाम मिल रहे हैं। ऐसे में सरकार के द्वारा दालों की भंडारण की सीमा को लेकर उठाया गया कदम उन्हें हतोत्साहित करेगा।

पांच प्रमुख दलहन हैं जो न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में हैं। इनमें चना, अरहर, उड़द, मूंग, मसूर शामिल हैं। कीमतों को नियंत्रित करने और आयात घटाने को लेकर रबी मार्केट सीजन 2021-2022 के लिए सरकार ने चना का एमएसपी 4,875 रुपए से बढ़ाकर 5,100 रुपए और मसूर का 4,800 रुपए से बढ़ाकर 5,100 रुपए किया है। जबकि अरहर और उड़द का एमएसपी अभी 6000 रुपये है और मूंग का एमएसपी 7196 रुपया है।

सरकार के चौथे अग्रिम अनुमान (2019-2020) के मुताबिक दलहनों का उत्पादन लक्ष्य 260 लाख टन के विरुद्ध 230 लाख टन ही रहा। यानी कुल उत्पादन में 11 फीसदी की कमी आई, जबकि सरकार के प्रथम अग्रिम अनुमान (2020-21) के मुताबिक दलहनों में अरहर महज 40 लाख टन ही पैदा हुई जबकि लक्ष्य 48 लाख टन का था। दलहनों में चने के बाद सबसे ज्यादा हिस्सेदारी करने वाले अरहर (तूर) के उत्पादन में करीब 16 फीसदी की गिरावट आई है।

केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का कहना है "मार्च-अप्रैल माह में दालों के दामों में लगातार बढ़ोतरी हुई थी। बाजार को सही संदेश देने के लिए तत्काल नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत महसूस की गई। जमाखोरी की अवांछनीय प्रथा, जिसकी वजह से बनावटी कमी की परिस्थिति पैदा होती है और मूल्यों में वृद्धि होती है, पर रोक लगाने के लिए पूरे देश में दालों के वास्तविक स्टॉक की घोषणा करने के लिए पहली बार यह प्रक्रिया अपनाई गई।"

किरण कुमार विस्सा बताते हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम ,1955 की वजह से ही कोरोना की पहली लहर के दौरान लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान खाद्य महंगाई पर खास फर्क नहीं पड़ा था। सरकार बेहतर तरीके से जानती है कि यह अधिनियम इस मामले में काफी उपयोगी है। हालांकि, सरकार ने जून, 2020 में तीन कृषि बिलों के बाद इस अधिनियम को संशोधित किया था, जिसका किसान संगठन विरोध कर रहे हैं।

बिस्सा ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में किया गया संशोधन केंद्र सरकार को यह शक्ति देता है कि वह आवश्यक वस्तुओं पर तत्काल प्रभाव से भंडारण सीमा (स्टॉक लिमिट) को तय कर सके। दरअसल यह शक्ति कृषि व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों को फायदा दिलाने के लिए है। अभी जब 2 जुलाई को केंद्र सरकार ने दालों की स्टॉक लिमिट तय की है तो इसके बाद हमारे तर्क को और पुष्टि मिल गई है कि वह बड़े कारोबारियों को ही फायदा दिलाना चाहती है। किसानों की आय को इससे कोई फायदा नहीं होने वाला।

वहीं, दाल भंडारण को लेकर अचानक जारी होने वाली इस अधिसूचना से पहले वर्ष 2020 में सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के संशोधन में कहा था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम या स्टॉक सीमा तभी लागू होगी जब दालों की कीमत या तो एमएसपी से 50 फीसदी अधिक होगी या देश में कोई आपातकालीन स्थिति होगी।

अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने डाउन टू अर्थ से कहा कि 2017 में एक अधिसूचना के माध्यम से सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया था कि सरकार के पोर्टल पर 6 प्रकार की दालों, मसूर, चना, तूर, उड़द, मूंग और काबली चना की स्टॉक सीमा अपलोड की जाएगी, जिसका व्यापारियों द्वारा विधिवत पालन किया जा रहा है।

दालें मूल रूप से 8 प्रकार की होती हैं और इन 8 प्रकार की दालों को मिलाने और संसाधित करने के बाद 30 से अधिक प्रकार की दालों में परिवर्तित किया जाता है। यह कल्पना से परे है कि थोक विक्रेता कैसे सिर्फ 100 टन में 30 से अधिक प्रकार की दालों को स्टॉक कर सकते है।

कन्फ्रेडेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स एसोसिएशन के रमणीक छेड़ा ने डाउन टू अर्थ से कहा स्टॉक सीमा निर्धारित करने वाली अधिसूचना को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया जाए क्योंकि 200 टन की स्टॉक सीमा 1955 में तय की गई थी जब देश की जनसंख्या केवल 25 करोड़ थी। वर्तमान आबादी के लिए यह सीमा काफी तर्कहीन और अनुचित है। यदि सरकार को लगता है कि स्टॉक की सीमा लागू करना आवश्यक है, तो देश की मौजूदा आबादी के अनुपात में 2000 टन की स्टॉक सीमा वो भी किसी विशेष दाल के लिए कोई स्टॉक सीमा निर्दिष्ट किए बिना थोक व्यापारियों के लिए निर्धारित की जा सकती है।

देश में बुनियादी खाद्य जरूरतों का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण के बीच कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए 1 अप्रैल, 1955 को आवश्यक वस्तु अधिनियम लाया गया था। दलहन से पहले प्याज की कीमतों को नियंत्रित करन के लिए सरकार ने स्टॉक सीमा 2020 में लगाई थी। इसकी वजह से कई किसानों का प्याज खराब हुआ था। अब दालों के मामले में किसानों पर इसकी गाज गिर सकती है।

Loudspeaker controversy: क‍ितना लाउड हो स्‍पीकर, क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश जिसका हवाला दे रहे राज ठाकरे?

राज ठाकरे ने अपने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में कहा क‍ि राज्‍य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का पालन कराना चाह‍िए जिसमें आदेश दिया है क‍ि 45 से 55 डेसिबल तक की आवाज की ही छूट है। मतलब लाउडस्‍पीकर की आवाज की सीमा इतनी ही होनी चाह‍िए। क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का वह आदेश जिसकी बात राज ठाकरे कर रहे हैं और ये डेसिबल (What is Decibel) क्‍या होता है ?

हाइलाइट्स

  • क‍ितना तेज हो साउंड, सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश 2005 में आदेश
  • आदेश के अनुसार आवाज से किसी को दिक्‍कत नहीं होनी चाह‍िए
  • अलग-अलग समय और जगहों के लिए तय है आवाज की सीमा

मुंबई: लाउडस्‍पीकर (Loudspeaker) पर बवाल दिन ब दिन लाउड ही हो जाता रहा। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के अध्‍यक्ष राज ठाकरे (Raj Thackeray) ने ऐलान किया था क‍ि बुधवार 4 मई को मनसे कार्यकर्ता हर मस्‍जिद के सामने उससे दोगुनी आवाज पर हनुमान चालीसा (Hanuman chalisa) का पाठ करेंगे। कई जगह ऐसा किया भी गया। सैकड़ों मनसे कार्यकताओं को ह‍िरासत में ले लिया गया। इसके बाद राज ठाकरे ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस की और सरकार को चेतावनी के देते हुए कहा क‍ि जब तक मस्‍जिदों से लाउडस्‍पीकर पर अजान दी जाएगी तब तक दोगुनी आवाज में हनुमान चालीसा को पाठ करेंगे।

राज ठाकरे ने अपनी पीसी के दौरान कहा क‍ि धर्म व्‍यक्‍तिगत मुद्दा है। ये सबके घर में रहना चाह‍िए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में 45 से 55 डेसिबल (Decibel) तक की आवाज की ही छूट है। यानी हम अपने घर में जो मिक्‍सर चलाते हैं, बस उतनी आवाज की ही छूट है। इस आदेश पर मुंबई पुलिस ने क्‍या किया? आख‍िर सुप्रीम कोर्ट उस आदेश में क्‍या लिखा है जिसका हवाला राज ठाकरे बार-बार दे रहे?

पहले आसान भाषा में डेसिबल को समझ लेते हैं
ध्वनि की मात्रा को मापने की यूनिट को डेसिबल (dB) कहते हैं। ज्‍यादा आवाज मतलब ज्‍यादा डेसिबल। कई रिपोर्ट में दावा किया जाता है क‍ि अच्छी नींद के लिए आसपास रहने वाला शोर 35 डेसिबल से ज्यादा ना हो और दिन के समय 45 डेसिबल तक ही हो। इससे ज्‍यादा होने पर स्‍वास्‍थ्‍य पर असर पड़ता है।

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मोटर कार, बस, मोटर साइकिल, स्कूटर, ट्रक आद‍ि का साउंड लेवल लगभग 90 डेसिबल त‍क होता है। इसी तरह सायरन की साउंड लेवल 150 डेसिबल तक होता है। जब हम किसी के कान में बात करते हैं तब आवाज का लेवल लगभग 20 डेसिबल होता है। मंदिर और मस्‍जिद में लगे लाउडस्पीकर की आवाज का स्‍तर लगभग 100 से 120 डेसिबल तक होता है। पटाखे लगभग 100 से 110 डेसिबल आवाज पैदा करते हैं। फ्रिज से आने वाली आवाज 40 डेसिबल होती है। डॉक्‍टर कहते हैं क‍ि 85 डेसिबल से ज्‍यादा आवाज आपको बहरा बना सकता है।

supreme court noise pollution

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी जिसमें कहा गया क‍ि आवाज से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए।

कितना लाउड हो स्‍पीकर, क्‍या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
लाउडस्‍पीकर की आवाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट के दो आदेश हैं। पहला आदेश 18 जुलाई 2005 का है तो दूसरा 28 अक्‍टूबर 2005 का। ध्वनि प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का सबसे अहम फैसला 18 जुलाई, 2005 का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि हर व्यक्ति को शांति से रहने का अधिकार है और यह अधिकार जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

लाउडस्पीकर या तेज आवाज में अपनी बात कहना अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार में आता है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी जीवन के अधिकार से ऊपर नहीं हो सकती। कोर्ट ने आगे कहा क‍ि किसी को इतना शोर करने का अधिकार नहीं है जो उसके घर से बाहर जाकर पड़ोसियों और अन्य लोगों के लिए परेशानी पैदा करे। कोर्ट ने कहा था कि शोर करने वाले अक्सर अनुच्छेद 19(1)ए में मिली अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की शरण लेते हैं। लेकिन कोई भी व्यक्ति लाउडस्पीकर चालू कर इस अधिकार का दावा नहीं कर सकता।

decibels noise

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की कॉपी जिसमें साउंड सीमा का जिक्र है।

अक्टूबर 2005 वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि त्योहारों के मौके पर आधी रात तक लाउडस्पीकर बजाए जा सकते हैं। लेकिन ऐसा एक साल में 15 दिन से ज्‍यादा नहीं हो सकता। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश आरसी लाहोटी और न्यायमूर्ति अशोक भान की पीठ ने एक वैधानिक नियम की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इसी आदेश में यह भी कहा गया था क‍ि लाउडस्पीकर या ऐसी कोई आवाज करने वाली चीज रात 10.00 बजे से सुबह 6.00 बजे के बीच बंद रहेगी। फिर वाहे वह सभागार, सम्मेलन कक्ष, सामुदायिक हॉल और बैंक्वेट हॉल हो।

18 जुलाई 2005 को आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने आवाज को लेकर कुछ मानक तय किये। कोर्ट ने आदेश दिया था कि सार्वजनिक स्थल पर लगे लाउडस्पीकर की आवाज उस क्षेत्र के लिए तय शोर के मानकों से 10 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी या फिर 75 डेसिबल (ए) से ज्यादा नहीं होगी, इनमें से जो भी कम होगा वही लागू माना जाएगा। जहां भी तय मानकों का उल्लंघन हो, वहां लाउडस्पीकर व उपकरण जब्त करने के बारे में राज्य प्रविधन करे।

कोर्ट के आदेश के अनुसार सार्वजनिक या निजी संपत्ति पर आवाज करने वाले कोई भी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की आवाज 55 डेसिबल होगी तभी उसे चलाने की अनुमति राज्‍य सरकार दे सकती है। जिस तरह के लाउडस्पीकर मंदिरों और मस्जिदों में लगे होते हैं, उनसे करीब 100 से 120 डेसिबल साउंड पैदा होता है जो सीधा-सीधा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्‍लंघन है।
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अगर कहीं निर्माण कार्य हो रहा है तो 75 डेसिबल से अधिक तक के शोर को अनुमति दी सकती है। विस्फोटक पर डेसिबल का उल्‍लेख करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा क‍ि बॉक्‍स पर यह लिखा हो क‍ि इसके अंदर का पटाखा क‍ितना ध्‍वनि प्रदूषण करेगा।

क्या कहता है कानून
देश में ते आवाज को लेकर कानून भी है। इसे वर्ष 2000 में बनाया गया और नाम दिया गया बने ध्वनि प्रदूषण (अधिनियम और नियंत्रण)। कानून की पांचवीं धारा लाउडस्पीकर्स और सार्वजनिक स्थानों पर आवाज के एक सीमा आदेश क्या है स्तर को लेकर बात करता है। इसके साफ-साफ कहा गया है क‍ि किसी भी सार्वजनिक स्‍थान पर आवाज वाले आयोजन के लिए प्रशासन से लिख‍ित मंजूरी लेनी होगी। इसके अलावा रात 10 से सुबह 6 बजे के बीच लाउडस्पीक नहीं बजा सकते। निजी और सार्वजनिक जगहों पर लाउडस्पीकर के आवाज की सीमा 10 और 5 डेसिबल से अधिक नहीं होनी चाहिए।

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इसी तरह वह जगह जहां आबादी रहती है, वहां साउंड की सीमा सुबह 6 बजे से रात 10 बजे तक 55 डेसिबल तो रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक 45 डेसिबल तक ही होना चाह‍िए। व्यावसायिक क्षेत्र में ज्‍यादा से ज्‍यादा 65 से 75 डेसिबल तक साउंड हो सकता है। अगर इस कानून का पालन न किया जाये तो कानून में पांच साल तक की जेल या एक लाख रुपये तक के जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है। देश के अलग-अलग राज्यों ने क्षेत्रों के अनुसार साउंड की सीम तय कर रखी है। लेकिन कहीं भी ये सीमा 70 डेसिबल से अधिक नहीं है।

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