निवेश करने का परिचय

कम अस्थिरता

कम अस्थिरता
आज जब पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक गिरावट की ओर बढ़ रहा है तथा इमरान को समर्थन के मुद्दे पर सेना ख़ुद बँट गई है, तब क्या सेना फिर से सत्ता अपने हाथों में लेगी? जानिए इमरान की सत्ता कैसे गई और आईएसआई की भूमिका क्या है। पहली कड़ी आप कल पढ़ चुके हैं (नहीं पढ़ी हो तो पढ़ने के लिए यहाँ टैप/क्लिक करें। आज पेश है इस सीरीज़ की दूसरी कड़ी।

कैलाश मानसरोवर यात्रा में 7 दिन कम लगेंगे, यहां तक वाहनों में जा सकेंगे श्रद्वालु

Kailash Mansarovar Yatra: कैलाश मानसरोवर यात्रा पर बुधवार को बड़ा अपडेट आया है। पता चला है कि वर्ष 2024 तक तीर्थयात्री भारत के अंतिम छोर पर वाहनों में जा सकेंगे। दरअसल, केंद्र सरकार द्वारा जल्द पूरा करने के दबाव के बीच सीमा सड़क संगठन द्वारा 2024 तक कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए चीन सीमा के पास लिपुलेख तक सामरिक सड़क पर काम पूरा करने की उम्मीद जताई है।

भारतीय सेना के इंजीनियर इन चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल सिंह ने कहा, “बड़ी संख्या में खंड पूरे किए जा चुके हैं। हम 2024 तक सड़क पर काम पूरा करने की उम्मीद कर रहे हैं, जो तीर्थयात्रियों को भारत में अंतिम बिंदु तक वाहनों का उपयोग करने की अनुमति देगा।” उन्होंने आगे कहा कि सड़क परियोजना के पूरा होने के बाद तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा का समय लगभग एक सप्ताह कम हो जाएगा। धारचूला से कैलाश मानसरोवर की दूरी मात्र 115 किलोमीटर है।

सुरंग बनाने की योजना

आगे अपने बयान में लेफ्टिनेंट जनरल हरपाल ने कहा कि सरकार ने परियोजना को हर संभव सहायता प्रदान की है और भारी-भरकम चिनूक हेलीकॉप्टरों का उपयोग उपकरणों को ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए किया गया है। उन्होंने कहा कि इसमें लगने वाले समय को कम करने और अस्थिर हिस्सों से बचने के लिए मार्ग के कुछ हिस्सों में सुरंग बनाने की भी योजना है।

1500 किमी की सड़क यात्रा है

बता दें नए मार्ग में पिथौरागथ और फिर लिपुलेख दर्रे तक की यात्रा शामिल है जो चीन के साथ सीमा पर है। सिक्किम में नाथू ला के माध्यम से कैलाश मानसरोवर यात्रा करने के लिए एक और मार्ग है जिसमें चीनी-नियंत्रित क्षेत्र में लगभग 1500 किमी की सड़क यात्रा शामिल है।

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Multibagger Stock Tips: ये हैं पिछले पांच वर्षों में सबसे सफल 5 मल्टीबैगर MNC स्टॉक, जानें इनके बारे में

Multibagger Stock Tips: बहुराष्ट्रीय निगम (MNC) के शेयर निवेशकों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. पिछले एक पखवाड़े में Nifty MNC Index के कई शेयरों को नई ऊंचाई पर पहुंचते देखा गया है.

By: एबीपी न्यूज़ | Updated at : 27 Aug 2021 06:35 PM (IST)

Multibagger Stock Tips: बहुराष्ट्रीय निगम (MNC) के शेयर निवेशकों (investors) के बीच काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि वे अच्छे लाभांश दाता हैं और अस्थिरता बढ़ने पर रक्षात्मक भी हो जाते हैं. अस्थिरता सूचकांक (volatility index) प्रकृति में चक्रीय है. कम अस्थिरता की अवधि के बाद अक्सर उच्च अस्थिरता की अवधि होती है और इसके ठीक उल्टा भी होता है.

वर्तमान में, अस्थिरता सूचकांक यानी, भारत VIX निचले स्तर पर कारोबार कर रहा है और जैसा कि हमने पहले उल्लेख किया है, अस्थिरता की एक कम अवधि के बाद अक्सर उच्च अस्थिरता आती है और बाजार सहभागियों को भी इसकी आशंका होती है, इसलिए बहुराष्ट्रीय कंपनियों के शेयरों में बहुत रुझान लोगों का देखा गया है.

पिछले एक पखवाड़े में Nifty MNC Index के कई शेयरों को नई ऊंचाई पर पहुंचते देखा है. इसलिए आज हम Nifty MNC Index से टॉप 5 प्रदर्शन करने वाले शेयरों की लिस्ट आपके लिए लेकर आए हैं.

Britannia Industries:

News Reels

  • 5 साल की अवधि में स्टॉक लगभग 447 फीसदी चढ़ा है.
  • यह वर्ष 2016 में 721.58 रुपये के स्तर पर बंद हुआ था और वर्तमान में स्टॉक अपने जीवनकाल के उच्च स्तरों को छूते हुए ईयर टू डेट (YTD) आधार पर 100 प्रतिशत से अधिक बढ़ा है.

Mphasis:

  • आईटी कंसल्टिंग और सॉफ्टवेयर उद्योग से जुड़ी एमफैसिस ने YTD के आधार पर लगभग 78 फीसदी की बढ़त हासिल की है.
  • 5 साल की अवधि में स्टॉक लगभग 384 फीसदी उछला है.

Honeywell Automation:

  • वर्ष 2021 इस शेयर के लिए अच्छा नहीं रहा क्योंकि यह YTD के आधार पर सिर्फ 7.26 प्रतिशत बढ़ा है.
  • हालांकि, 5 साल की अवधि में इसने लगभग 344 फीसदी का शानदार रिटर्न दिया है.

Abbott India:

  • 5 साल की अवधि में स्टॉक 300 फीसदी के करीब उछला है.

Bata India:

  • वर्ष 2021 में अंडरपरफॉर्मर होने के बावजूद, निफ्टी इंडेक्स के 97 फीसदी के लाभ के मुकाबले YTD पर स्टॉक 8.63 फीसदी ऊपर है
  • स्टॉक 5 साल के दौरान 281 फीसदी का शानदार रिटर्न देने में कामयाब रहा है.

डिस्क्लेमर: (यहां मुहैया जानकारी सिर्फ़ सूचना हेतु दी जा रही है. यहां बताना ज़रूरी है की मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन है. निवेशक के तौर पर पैसा लगाने से पहले हमेशा एक्सपर्ट से सलाह लें. ABPLive.com की तरफ से किसी को भी पैसा लगाने की यहाँ कभी भी सलाह नहीं दी जाती है.)

RBI ने लॉन्च किया ‘डिजिटल रुपया’ (e₹), समझिए क्या होंगे इसके फायदे

RBI Digital Rupee: भारतीय रिजर्व बैंक ने आज 1 नवंबर को अपनी डिजिटल करेंसी ‘डिजिटल रुपया’ को लॉन्च कर दिया है। केंद्रीय बैंक (RBI) ने अभी होलसेल ट्रांजेक्शन के लिए डिजिटल रुपया (E-Rupee) जारी किया है। यह फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया है। शुरुआती दौर में डिजिटल रुपया सरकारी प्रतिभूतियों में द्वितीयक बाजार लेन-देन निपटाने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा।

Key Points

– भारत सरकार ने 01 फरवरी, 2022 को वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में डिजिटल रुपया लाने की घोषणा की
– 30 मार्च, 2022 को सीबीडीसी जारी करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 में संशोधनों को सरकार ने राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से अधिसूचित की
– 01 नवंबर, 2022 को होलसेल ट्रांजेक्शन के लिए डिजिटल रुपया (e₹) लांच

पायलट प्रोजेक्ट

इस टेस्टिंग के तहत सरकारी सिक्योरिटीज में सेकेंडरी मार्केट लेनदेन का निपटान किया जाएगा। आरबीआई ने ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ लाने की अपनी योजना की दिशा में कदम बढ़ाते हुए डिजिटल रुपये का पायलट टेस्टिंग शुरू करने का फैसला किया है।

आरबीआई ने केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा के बारे में पेश अपनी संकल्पना रिपोर्ट में कहा था कि यह डिजिटल मुद्रा लाने का मकसद मुद्रा के मौजूदा स्वरूपों का पूरक तैयार करना है। इससे यूजर्स को मौजूदा भुगतान प्रणालियों के साथ अतिरिक्त भुगतान विकल्प मिल पाएंगे।

डिजिटल करेंसी में 9 बैंक शामिल

थोक खंड (Wholesale Transactions) के लिए होने वाले डिजिटल करेंसी के पायलट प्रोजेक्ट में नौ बैंक होंगे। इनमें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक, यस बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक और एचएसबीसी बैंक शामिल हैं। ये बैंक गवर्नमेंट सिक्योरिटीज में लेनदेन के लिए इस डिजिटल करेंसी का इस्तेमाल करेंगे. इसे सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी यानी CBDC का नाम दिया गया है और भारत की ये पहली डिजिटल करेंसी आपके लिए बहुत कुछ बदलने वाली है।

क्या है CBDC

सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) किसी केंद्रीय बैंक की तरफ से उनकी मौद्रिक नीति के अनुरूप नोटों का डिजिटल स्वरूप है। इसमें केंद्रीय बैंक पैसे छापने के बजाय सरकार के पूर्ण विश्वास और क्रेडिट द्वारा समर्थित इलेक्ट्रॉनिक टोकन या खाते जारी करता है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा जारी डिजिटल एक करेंसी कानूनी टेंडर है। यह फिएट कम अस्थिरता मुद्रा के समान है और फिएट करेंसी के साथ इसे वन-ऑन-वन एक्सचेंज किया जा सकता है। सीबीडीसी, दुनिया भर में, वैचारिक, विकास या प्रायोगिक चरणों में है।

दो तरह की होगी CBDC

– Retail (CBDC-R): Retail CBDC संभवतः सभी को इस्तेमाल के लिए उपलब्ध होगी
– Wholesale (CBDC-W) : इसे सिर्फ चुनिंदा फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशंस के लिए डिजाइन किया गया है

पिछले दिनों RBI ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा था कि केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा (सीबीडीसी) का उद्देश्य मुद्रा के मौजूदा रूपों को बदलने के बजाय डिजिटल मुद्रा को उनका पूरक बनाना और उपयोगकर्ताओं को भुगतान के लिए एक अतिरिक्त विकल्प देना है। इसका मकसद किसी भी तरह से मौजूदा भुगतान प्रणालियों को बदलना नहीं है.। यानी आपके लेन-देन पर इसका कोई असर नहीं होने वाला है।

RBI को सीबीडीसी की शुरूआत से कई तरह के लाभ मिलने की उम्मीद है, जैसे कि नकदी पर निर्भरता कम होना, मुद्रा प्रबंधन की कम लागत और निपटान जोखिम में कमी। यह आम जनता और व्यवसायों को सुरक्षा और तरलता के साथ केंद्रीय बैंक के पैसे का एक सुविधाजनक, इलेक्ट्रॉनिक रूप प्रदान कर सकता है और उद्यमियों को नए उत्पाद और सेवाएं बनाने के लिए एक मंच प्रदान कर सकता है।

डिजिटल करेंसी के फायदे

देश में आरबीआई की डिजिटल करेंसी (E-Rupee) आने के बाद आपको अपने पास कैश रखने की जरूरत नहीं होगी। डिजिटल करेंसी आने से सरकार के साथ आम लोगों और बिजनेस के लिए लेनदेन की लागत कम हो जाएगी। ये फायदे भी होंगे

बिजनेस में पैसों के लेनदेन का काम हो जाएगा आसान।

CBDC द्वारा मोबाइल वॉलेट की तरह सेकंडों में बिना इंटरनेट के ट्रांजैक्शन होगा

चेक, बैंक अकाउंट से ट्रांजैक्शन का झंझट नहीं रहेगा।
नकली करेंसी की समस्या से छुटकारा मिलेगा।

पेपर नोट की प्रिंटिंग का खर्च बचेगा
एक डिजिटल मुद्रा की जीवन रेखा भौतिक नोटों की तुलना में अनिश्चित होगी

CBDC मुद्रा को फिजिकल तौर पर नष्ट करना, जलाया या फाड़ा नहीं जा सकता है

अन्य क्रिप्टोकरेंसी की तुलना में डिजिटल रुपये का एक अन्य प्रमुख लाभ यह है कि इसे एक इकाई द्वारा विनियमित किया जाएगा, जिससे बिटकॉइन जैसी अन्य आभासी मुद्राओं से जुड़े अस्थिरता जोखिम को कम किया जा सकेगा।

क्रिप्टोकरेंसी और डिजिटल रुपी में अंतर

क्रिप्टोकरेंसी पूरी तरह से प्राइवेट है। इसे कोई मॉनिटर नहीं करता और इस पर किसी सरकार या सेंट्रल बैंक का कंट्रोल नहीं होता। ऐसी करेंसी गैरकानूनी होती हैं। लेकिन, RBI की डिजिटल करेंसी पूरी तरह से रेगुलेटेड है, जिसके सरकार की मंजूरी होगी। डिजिटल रुपी में क्वांटिटी की भी कोई सीमा नहीं होगी। फिजिकल नोट वाले सारे फीचर डिजिटल रुपी में भी होंगे। लोगों को डिजिटल रुपी को फिजिकल में बदलने की सुविधा होगी। क्रिप्टोकरेंसी का भाव घटता-बढ़ता रहता है, लेकिन डिजिटल रुपी में ऐसा कुछ नहीं होगा।

अर्थव्यवस्था को होगा फायदा

भारत में मुद्रा का डिजिटलीकरण मौद्रिक इतिहास में अगला मील का पत्थर है। ट्रांजेक्शन कॉस्ट घटने के अलावा CBDC की सबसे खास बात है कि RBI का रेगुलेशन होने से मनी लॉन्ड्रिंग, टेरर फंडिंग, फ्रॉड की आशंका नहीं होगी। इस डिजिटल करेंसी से सरकार की सभी अधिकृत नेटवर्क के भीतर होने वाले ट्रांजेक्शंस तक पहुंच हो जाएगी। सरकार का बेहतर नियंत्रण होगा कि पैसा कैसे देश में प्रवेश करता है और प्रवेश करता है, जो उन्हें भविष्य के लिए बेहतर बजट और आर्थिक योजनाओं के लिए जगह बनाने और कुल मिलाकर अधिक सुरक्षित वातावरण बनाने की अनुमति देगा।

डिजिटल रुपया (e ₹) प्रणाली भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगी, जिसका बड़ा सकारात्मक असर पूरी अर्थव्यवस्था पर देखने को मिलेगा।

पाकिस्तान -भाग 2 : ISI चीफ़ की नियुक्ति ने कैसे बिगाड़ा इमरान का खेल?

आख़िर पाकिस्तान में अस्थिरता क्यों है? इमरान ख़ान की सत्ता जाने की प्रमुख वजह क्या थी? सेना और आईएसआई में बदलाव लाने का उनका प्रयास क्या उनको उलटा पड़ गया?

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आज जब पाकिस्तान राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक गिरावट की ओर बढ़ रहा है तथा इमरान को समर्थन के मुद्दे पर सेना ख़ुद बँट गई है, तब क्या सेना फिर से सत्ता अपने हाथों में लेगी? जानिए इमरान की सत्ता कैसे गई और आईएसआई की भूमिका क्या है। पहली कड़ी आप कल कम अस्थिरता पढ़ चुके हैं (नहीं पढ़ी हो तो पढ़ने के लिए यहाँ टैप/क्लिक करें। आज पेश है इस सीरीज़ की दूसरी कड़ी।

पाकिस्तान में समय के साथ-साथ आर्मी के साथ-साथ इंटर सर्विसेज़ इंटेलिजेंस यानी आईएसआई के रूप में एक दूसरी ताक़त भी उभरी जिसकी भूमिका 1980 के दशक के बाद बहुत ही महत्वपूर्ण हो गई। आईएसआई का प्रदर्शन 1949 से 1971 तक कोई विशेष उपलब्धियों वाला नहीं था। शीत युद्ध में रूस के अफ़ग़ानिस्तान में प्रवेश (24 दिसंबर 1977-15 फ़रवरी 1989) के समय अमेरिका के सी.आई.ए. के साथ काम करने के दौरान जनरल ज़िया ने आई.एस.आई. को आगे किया। अमेरिका ने रूस को अफ़ग़ानिस्तान से हटाने के लिए आई.एस.आई. को पैसा और हथियार देकर मुजाहिदीन की फ़ौज तैयार की। जनरल ज़िया ने इस संगठन का इस्तेमाल अफ़ग़ानिस्तान के साथ-साथ आंतरिक मामलों में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए किया।

जनरल ज़िया की मौत (17 अगस्त 1988) के बाद पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। इसके बाद आर्मी और आई.एस.आई. दोनों का संचालन एक ही आर्मी प्रमुख के तहत होने के बावजूद वे दोनों अलग हो गए क्योंकि आई.एस.आई. प्रधानमंत्री को भी रिपोर्ट करती है। अपनी तरफ़ से हर सत्ताधारी दल और प्रधानमंत्री ने आर्मी और आई.एस.आई. प्रमुख पद पर अपने पसंदीदा व्यक्ति को बिठाने की कोशिश की पर परिणाम हमेशा उस राजनेता एवं दल के पक्ष में नहीं रहा। अब तक आई.एस.आई. के 26 प्रमुख हुए हैं जिनमें से तीन प्रमुखों की नियुक्ति उन्हीं राजनेताओं के सत्ता खोने का कारण बनी जिन्होंने उन्हें चुना था।

जनरल ज़िया के बाद बेनज़ीर भुट्टो ने देश की सत्ता तो सँभाली (2 दिसंबर 1988) परंतु अमेरिका ने पाकिस्तान की आर्मी से ही संबंध बनाए रखा।‌ उसे अफ़ग़ानिस्तान में चल रहे अपने ऑपरेशन के अंतिम पड़ाव के लिए आर्मी ज़्यादा भरोसेमंद लगी। उसके कई कारण थे। बेनज़ीर राजनीति में नई थीं। वे आर्मी और आई.एस.आई. को अपने पिता की क़ानूनी तरीक़े से की गई हत्या का ज़िम्मेवार मानती थीं। उन्होंने अपने अधिकार का प्रयोग कर आई.एस.आई. के तत्कालीन प्रमुख जनरल हमीद गुल को हटाकर एक रिटायर्ड जनरल शमसूर रहमान कल्लू को नियुक्त किया। यह नियुक्ति पाकिस्तान आर्मी और अमेरिका दोनों को ही नापसंद थी। नतीजा, बेनज़ीर की चुनी हुई सरकार को जल्द ही सत्ता से हाथ धोना पड़ा (6 अगस्त 1990)।

उसके बाद पाकिस्तान इंटेलिजेंस ने अपने नुमाइंदे नवाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री बनवाया। नवाज़ शरीफ़ 1990 से आज तक तीन बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद सँभाल चुके हैं। उनके संबंध आर्मी के रिटायर्ड और कार्यरत सीनियर अफसरों से मधुर कम अस्थिरता रहे हैं।

उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल (17 फ़रवरी 1997-12 अक्टूबर 1999) में जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ को आर्मी चीफ़ के पद पर नियुक्त किया लेकिन आई.एस.आई. प्रमुख के रूप में कम अस्थिरता जनरल ज़ियाउद्दीन (अक्टूबर 1998-12 अक्टूबर 1999) की नियुक्ति कर दी बिना मुशर्रफ़ की रज़ामंदी के। इससे दोनों के रिश्तों में खटास पड़ गई। करगिल युद्ध के बाद तो नवाज़ शरीफ़ और जनरल मुशर्रफ़ के आपसी रिश्ते इतने ख़राब हो गए कि 12 अक्टूबर 1999 को नवाज़ शरीफ़ ने मुशर्रफ़ को हटाकर जनरल ज़ियाउद्दीन को आर्मी प्रमुख बना दिया। लेकिन वे कुछ ही घंटों के लिए आर्मी चीफ़ रहे क्योंकि जनरल मुशर्रफ़ जो कि उस दिन श्रीलंका से लौट रहे थे, आते ही नवाज़ शरीफ़ को सत्ता से बेदख़ल कर दिया।

जनरल मुशर्रफ़ अगले कई साल तक पाकिस्तान की सत्ता पर क़ाबिज़ रहे लेकिन जब देश में लोकतंत्र बहाली की माँग ज़ोर पकड़ने लगी तो उन्हें सत्ता छोड़नी पड़ी। उनके जाने के बाद पाकिस्तान आर्मी ने इमरान ख़ान पर दाँव लगाया और 2014 के बाद उनकी छवि को एक सोची-समझी रणनीति के तहत चमकाया। उन्होंने 'मैं ईमानदार और बाक़ी राजनेता चोर' का स्लोगन दिया और उसे घर-घर पहुँचाया। इंटेलिजेंस वालों ने 2018 के आम चुनाव और उसके परिणाम आने के बाद इमरान ख़ान की काफ़ी मदद की। इमरान की पार्टी को कम अस्थिरता कम अस्थिरता तब 342 सदस्यों वाली राष्ट्रीय विधानसभा में केवल 149 सीटें मिली थीं - यानी बहुमत से कुछ कम। तब आर्मी ने क्षेत्रीय दलों पर दबाव डलवाकर इमरान की सरकार बनवाई।

सत्ता में आने के कुछ ही समय बाद इमरान ख़ान ने इंटेलिजेंस के कामों में अपनी पकड़ को और मज़बूत करने के लिए तत्कालीन आई.एस.आई. प्रमुख जनरल सय्यद असीम मुनीर अहमद शाह (25 अक्टूबर 2018-16 जून 2019) को हटवाकर उनकी जगह जनरल फ़ैज़ हमीद (16 जून 2019-19 नवंबर 2021) को बिठा दिया। हद तो तब हो गई जब वे जनरल फ़ैज़ हमीद को सेना प्रमुख के पद पर लाने का मंसूबा ज़ाहिर करने लगे। उन्हें लगता था कि जनरल क़मर जावेद बाजवा, जिनका कार्यकाल इमरान ख़ान ने ही नवंबर 29 नवंबर 2022 तक के लिए कर दिया था, मान जाएँगे। लेकिन हुआ उलटा। जनरल बाजवा ने फ़ैज़ हमीद को आई.एस.आई. प्रमुख के पद से हटाकर, जनरल नदीम अहमद अंजुम को उनकी जगह पर नियुक्त कर दिया (20 नवंबर 2021)। और फिर 10 अप्रैल 2022 को क्षेत्रीय दलों का सहयोग ख़त्म करवाकर इमरान ख़ान को ही सत्ता से हटवा दिया।‌

अगली कड़ी में पढ़ें : ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको पाक सेना ने ठगा नहीं

कम अस्थिरता

अगले महीने की शुरूआत में एक परिपक्व अंतरराष्ट्रीय बांड के लिए 1 बिलियन डॉलर के पुनर्भुगतान से पहले पांच साल के क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (सीडीएस) के एक सप्ताह में 30 प्रतिशत अंक बढ़कर 93 प्रतिशत हो जाने से पाकिस्तान के डिफॉल्ट के जोखिम का खतरा गंभीर हो गया है।

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने एक रिसर्च हाउस के हवाले से बताया कि जनवरी 2021 में सीडीएस 4.2 फीसदी पर था।

वित्त मंत्री इशाक डार और कई वित्तीय विशेषज्ञों ने दोहराया है कि पाकिस्तान किसी भी अंतरराष्ट्रीय भुगतान में चूक नहीं करेगा और सीडीएस में अस्थिरता का देश के डिफॉल्ट जोखिम से कोई लेना-देना नहीं है।

द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया, वैश्विक और स्थानीय विशेषज्ञों और बॉन्ड निवेशकों के एक वर्ग ने सीडीएस में वृद्धि को अपनी प्राप्तियों के लिए खतरे के रूप में देखा।

5 दिसंबर को परिपक्व हो रहे 1 अरब डॉलर के अंतरराष्ट्रीय बॉन्ड (सुकुक) पर प्रतिफल (प्रतिफल दर) 18 नवंबर को लगभग 96 प्रतिशत से बढ़कर सोमवार को 120 प्रतिशत हो गया, जो निवेशकों के पाकिस्तान में विश्वास की कमी को दर्शाता है कि क्या यह परिपक्व कर्ज चुकाने में सक्षम होगा।

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की नौवीं समीक्षा में देरी के बीच यह घटनाक्रम आया, जिसने आंशिक रूप से देश में विदेशी मुद्रा प्रवाह को अवरुद्ध कर दिया।

एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने बताया, अगस्त 2021 में 20 बिलियन डॉलर से अधिक कम अस्थिरता के मुकाबले विदेशी मुद्रा भंडार 8 बिलियन डॉलर के गंभीर रूप से निम्न स्तर तक गिर गया, जिससे देश की अंतर्राष्ट्रीय भुगतान करने की क्षमता कमजोर हो गई।

आरिफ हबीब लिमिटेड के अनुसंधान प्रमुख ताहिर अब्बास ने कहा कि सीडीएस एक प्रीमियम है, जो निवेशक डिफॉल्ट के जोखिम के खिलाफ बांड में अपने निवेश का बीमा करने के लिए भुगतान करते हैं।

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