इक्विटी शेयर के प्रकार

Equity Share क्या है? Equity Share in Hindi
Equity share कैपिटल का अर्थ है आम जनता के लिए शेयर जारी करके जुटाई गयी पूंजी या रकम. इक्विटी शेयर कैपिटल को रिस्क कैपिटल के नाम से भी जाना जाता है.
जब किसी कंपनी को फण्ड की आवश्यकता होती है तो कंपनी अपने शेयर की सदस्य्ता आम लोगो के लिए जारी करती है और लोगो को कंपनी के एक हिस्से का मालिक बनने का प्रस्ताव रखती है.
जब कोई निवेशक पैसे देकर इन कंपनियों के शेयर को खरीदता है तो वह कंपनी के एक हिस्से का मालिक बन जाता है. आसान शब्दों में शेयर जारी करके जुटाई गयी पूंजी या इक्विटी शेयर के प्रकार रकम को इक्विटी शेयर कैपिटल कहते है.
जब एक बार Equity share IPO(Initial Public Offer) के माध्यम से लोगो के लिए जारी कर दिया जाता है तो यह कंपनी के लिए धन का एक नियमित श्रोत बन जाता हैं.
इसी समय Equity share धारक को भी शेयर का लाभ प्राप्त होता है. कंपनी के शेयर खरीदने पर वह कंपनी के मालिक बन जाते है और जब कंपनी को कुछ लाभ होता है तो इनको भी एक हिस्सा लाभांश के रूप में प्राप्त होता है.
इक्विटी शेयर जारी करने का मुख्य उदेष्य है कंपनी को बढ़ाने और विकाश करने के लिए धन को जुटाना।
इक्विटी शेयर की विशेषताएं क्या हैं?
अभी तक तो आपको इक्विटी शेयर के सिद्धांत के बारे में थोड़ी बहुत जागरूकता हो गयी होगी ,चलिए इसे आगे बढ़ाते हुए जान लेते है की इक्विटी शेयर के विशेषताएं क्या है? जिनकी वजह से लोग इस पर विश्वाश करते है.
Permanent Nature
आप कंपनी के जिन शेयर शेयर को खरीदते है आप इन्हे तब तक वापस नहीं दे सकते है जब तक की कंपनी अपने व्यवसाय को बंद करने का मन नहीं बना लेती है.
Dividend Pay-Out and Transferable
इक्विटी शेयर ट्रांस्फ़ेरेबल(स्थानांतरणीय) होते है जिसका अर्थ है की आप जिन शेयर शेयर को खरीद कर कंपनी के मालिक बने हो उन्हें आप किसी दूसरे निवेशक को बेचकर (स्थानांतरण) कर सकते हो. आसान शब्दों में आप उन शेयर के मालिक किसी दूसरे निवेशक को बना सकते हो.
High Return Potential
इक्विटी शेयर एक जोखिम भरा निवेश इक्विटी शेयर के प्रकार है जो स्थिर नहीं होता है लेकिन यह जोखिम लेने लायक भी है क्यूंकि इसमें आपको एक अच्छा रिटर्न प्राप्त होता है. यदि आप जोखिम लेने में माहिर हो या जोखिम सहन कर सकते है तो इक्विटी शेयर में पैसे निवेश करके आप अपनजी किस्मत को आजमा सकते है.
इक्विटी शेयर पूंजी के प्रकार क्या हैं?
यदि Equity share के विशेषताओं के बारे में पढ़ कर आपके मन में यह बात उठी है की मुझे भी इक्विटी शेयर में पैसे निवेश करने चाहिए। तो चलिए आप पहले इक्विटी शेयर के प्रकार के बारे में जान ले , जो कुछ निचे इस प्रकार दिए है:
Ordinary shares
Ordinary shares जिन्हे हम हिंदी में साधारण शेयर भी कहते है इन शेयर को जारी करने करने का मुख्य उदेश्य है लम्बे समय के खर्चो को पूरा करने के लिए धन को जुटाया जाय. साधारण शेयर के शेयर धारको को कंपनी के प्रबंधन और दूसरे कामो के भाग लेने का अधिकार होता है. जिन निवेशक के पस्स अधिक शेयर होते है उन्हें कंपनी में मतदान का अधिकार होता है.
Preference Equity Shares
Preference Equity Shares को हिंदी में वरीयता इक्विटी शेयर कहते है. इस प्रकार के शेयर में निवेशक को संचित लाभांश(डिविडेंट) के भुगतान के गारंटी के लिए जारी किया जाता है.
वरीयता इक्विटी शेयर को अधिक अधिकार प्राप्त होते है साधारण शेयर शेयर धारक की तुलना में. इन्हे मतदान करने का सिमित अधिकार होता है. इसके आलावा भी यदि आप शेयर में भाग लेते है जिसकी लाभ निर्धारित की गयी है तो आपको निर्धारित लाभ के साथ बोनस भी प्राप्त हो सकता हैं.
Authorised share capital
Authorised share capital को हिंदी में अधिकृत शेयर पूंजी कहते है. अधिकतम राशि वह है जो एक कंपनी फण्ड की जुरूरत को पूरा करने के लिए शेयर जारी करके जुटा सकती है.
हालाँकि कोई कंपनी बाध्य नहीं होती है की वह आपके Authorised share capital को लोगो के लिए जारी करके या नहीं। लेकिन नियम और विनियम का पालन करने के बाद अधिकृत शेयर पूंजी को बड़ा सकते है, यह एक व्यापक सिद्धांत है.
Issued share capital
यह शेयर अधिकृत शेयर पूंजी का एक भाग है जिनमे आमतौर पर जनता से आवेदन आमंत्रित किये जाते है. इसकी सिमा अधिकृत शेयर पूंजी की सिमा से कम होनी चाहिए। इस बात का ध्यान देना की जारी की गयी पूंजी कभी अधिकृत शेयर पूंजी से ज्यादा नहीं हो सकती है.
Subscribed share capital
यह Issued share capital का एक भाग है जिसे निवेशक के द्वारा सब्सक्राइब किया जाता है. जब सदस्य शेयर की सदस्य्ता लेते है तो कंपनी की सदस्य्ता पूंजी बढ़ जाती है.
Paid-up capital
यह Subscribed share capital का एक भाग होता है जिसे up कहा जाता है. जिसका अर्थ होता है की पैसा निवेशक के द्वारा ही भुगतान किया गया है. ज्यादातर मामलों में निवेशक को शेयर की पूरी राशि का भुगतान करना पड़ता है तो किन्ही मामलो में निवेशक किस्तों में भी भुगतान करते है जैसे फर्स्ट कॉल,सेकंड कॉल.
इक्विटी शेयर के इन प्रकारो के आलावा आपको इन प्रकारो के भी बारे में जान लेना चाहिए:
What is Equity Share? – इक्विटी शेयर क्या होता है?
तो चलिए आज के हमारे इस लेख में हम यह जानेगें कि What is Equity Share? – इक्विटी शेयर क्या होता है? के कितने प्रकार होते हैं?
What is Equity Share? – इक्विटी शेयर क्या होता है?
Equity Share को साधारण शेयर या ordinary Share भी कहा जाता है। हम जब भी किसी से अपनी बात करते हैं तो हम शॉर्ट फॉर्म में इक्विटी शेयर को ही शेयर कहते हैं। यानी कि अगर किसी शेयर के आगे पीछे कुछ नहीं लिखा है तो सिर्फ ” शेयर” लिखा है तो वह अवश्य ही इक्विटी शेयर माना जाता है।
शेयर के तीन प्रकार होते हैं। भारत जैसे देश में मुख्यता इन्हीं तीन तरह के शेयर की प्रमुखता है।
- Equity Share – इक्विटी शेयर
- Preference Share – प्रेफरेंस शेयर
- DVR Share – डीवीआर शेयर
साधारण बोलचाल में हम किसी भी शेयर को शेयर ही कहते हैं ना कि अलग-अलग नाम का प्रयोग करते हैं। लेकिन यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि जब भी कोई व्यक्ति “ शेयर” शब्द का इस्तेमाल करता है। इसका सीधा अर्थ है कि वह Equity Share के बारे में बात कर रहा है।
किसी भी कंपनी के निवेशक के पास में जितनी ज्यादा शेयर यानी कि इक्विटी शेयर रहेगी, उतना ज्यादा मालिकाना हक उस कंपनी के ऊपर होता है।
इक्विटी शेयर होल्डर का लाभांश डेट नहीं होता है तथा जिसमें निवेशक यानी शेयर होल्डरों को मालिक माना जाता है। एक इक्विटी शेयर, जिसे आमतौर पर साधारण शेयर के रूप में जाना जाता है, एक हिस्सा स्वामित्व होता है। कंपनी को ज्यादा फायदा होने पर बड़ा फायदा इक्विटी शेयर होल्डरों को ही होता है। उसके ठीक विपरीत अगर कंपनी डूब जाती है तो इसका नुकसान भी इक्विटी शेयर होल्डर को उठाना पड़ता है।
इक्विटी शेयर होल्डर और मालिकाना हक
इक्विटी शेयर होल्डर को कंपनी का असली मालिक माना जाता है ऐसा इसलिए है क्योंकि इक्विटी शेयर होल्डर के पास कंपनी में किए जाने वाले मैनेजमेंट के फैसले में वोट देने का अधिकार होता है। इस तरह से इक्विटी शेयर होल्डर कंपनी के कार्यों पर नियंत्रण रखता है।
इक्विटी शेयर होल्डर को कंपनी द्वारा अर्जित किए गए लाभ में सबसे अंत में लाभ से डिविडेंड के रूप में हिस्सा दिया जाता है। यही वजह है कि अगर कंपनी लाभ अर्जित नहीं करती है तो इक्विटी शेयर होल्डर को किसी भी तरह का लाभ कंपनी द्वारा नहीं दिया जाता है।
इस तरह से देखा जाए तो इक्विटी शेयर होल्डर किसी कंपनी के शेयर को खरीद करके वह अपनी पूंजी अधिक जोखिम में डाल देता है। क्योंकि अगर कभी कंपनी बंद होती है तो इक्विटी शेयर होल्डर को सबसे अंत में पूंजी वापस मिलता है, और इसलिए इनको कंपनी का असली मालिक माना जाता है।
Equity Share से कंपनी को क्या फायदा होता है?
- इक्विटी शेयर होल्डर को कंपनी अपनी मर्जी से लाभांश देती है। अगर कंपनी फैसला करती है कि लाभांश नहीं देना तो इक्विटी शेयर होल्डर को किसी भी तरह का कोई लाभांश नहीं मिलता है।
- इक्विटी शेयर जारी करने से कंपनी की संपत्ति के ऊपर कोई अतिरिक्त दायित्व उत्पन्न नहीं होता है।
- इक्विटी शेयर, स्टॉक मार्केट पर आसानी से खरीद बिक्री यानी कि ट्रेडिंग की जा सकती है।
- इक्विटी शेयर, किसी भी कंपनी के लिए पूंजी जुटाने का सबसे बढ़िया साधन है।
- कंपनी की संपत्ति पर कोई शुल्क बनाए बिना इक्विटी शेयर जारी किया जा सकता है।
इक्विटी शेयर होल्डर को होने वाले फायदे
- इक्विटी शेयर इक्विटी शेयर के प्रकार होल्डर को कंपनी का असली मालिक माना जाता है। कंपनी के लाभ अर्जित करने की स्थिति में सबसे आखरी में इक्विटी शेयर होल्डर को लाभांश (Dividend) दिया जाता है।
- इक्विटी शेयर होल्डर के पास कंपनी के कार्यों के लिए वोटिंग या मतदान का अधिकार होता है। इस तरह से इक्विटी शेयर होल्डर कंपनी के कार्यों को नियंत्रित कर सकता है।
- अगर कंपनी बड़ा लाभ कम आती है, तो इसका अधिक फायदा इक्विटी शेयर होल्डर को मिलता है। इक्विटी शेयर का भाव बढ़ जाता है और दूसरा लाभांश अधिक मिलने की उम्मीद होती है।
इक्विटी शेयर से कंपनी को नुकसान
- यदि एक बार कोई कंपनी इक्विटी शेयर जारी कर देती है तो कंपनी इक्विटी पर ट्रेडिंग का लाभ नहीं ले सकती है।
- इक्विटी शेयर होल्डर खुद को जोड़ तोड़ तथा व्यवस्थित करके कंपनी के प्रबंधन के लिए बाधाएं उत्पन्न कर सकता है।
- इक्विटी कैपिटल को भुनाया नहीं जा सकता है, इसीलिए कैपिटलईजेशन का खतरा हमेशा बना रहता है।
- निश्चित आय के साथ सुरक्षित प्रतिभूतियों में निवेश करने की इच्छा रखने वाले निवेशकों को ऐसे शेयरों के लिए कोई आकर्षण नहीं होता।
- समृद्ध अवधि के दौरान बाजार में शेयरों के मूल्य में वृद्धि के लिए उच्च लाभांश का भुगतान करना पड़ता है तथा यह अटकलों की ओर जाता है।
Equity Share कैसे खरीद सकते हैं?
इक्विटी शेयर को आप प्राइमरी एवं सेकेंडरी मार्केट से खरीद सकते हैं। आईपीओ या एफपीओ प्राइमरी मार्केट होते हैं। जबकि मान्यता प्राप्त ब्रोकर को सेकेंडरी मार्केट कहा जाता है।
साधारण शब्दों में कहा जाए तो शेयर बाजार पर किसी भी शेयर पर निवेश करने वाला निवेशक इक्विटी शेयर ही खरीदता है। इक्विटी शेयर खरीदने के लिए किसी भी निवेशक के पास डीमेट अकाउंट होना अनिवार्य होता है। उम्मीद करता हूं कि आपको यह समझ में आ गया होगा कि What is Equity Share? – इक्विटी शेयर क्या होता है?
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शेयर और डिबेंचर में अंतर क्या है | Difference between share and debenture in hindi
तात्कालिक समय में शेयर और डिबेंचर में निवेश करना व्यापार का एक अच्छा माध्यम बन गया है. समाज के किसी भी तबके, जाति धर्म के लोग इसके अंतर्गत अपने मेहनत से कमाए गये पैसे इस उद्देश्य और उम्मीद से निवेश करते हैं कि उसके एवज में उन्हें अच्छा ख़ासा ब्याज रिटर्न के तौर पर प्राप्त हो सकेगा. एक तरफ जहाँ शेयर किसी कंपनी के कैपिटल का शेयर होता है, वहीँ पर डिबेंचर एक लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट के तौर पर सामने आता है. इसमें कंपनी एक तय दर से निवेशकों को लाभ पहुंचाती है. यहाँ पर इन दोनों का वर्णन किया जा रहा है.
शेयर क्या है (What is Share)
किसी कंपनी के सबसे छोटे हिस्से को शेयर कहा जाता है. यह शेयर ओपन मार्केट में सेल के लिए लाया जाता है. इसकी सहायता से किसी कंपनी के कैपिटल में वृद्धि की जाती है. जिस क़ीमत पर यह शेयर लोगों को प्राप्त होता है, उसे शेयर प्राइस कहा जाता है. यह शेयर कंपनी के मालिकाना हक़ में शेयरहोल्डर का हिस्सा दर्शाता है. शेयर आमतौर पर स्थानांतरित किये जा सकते हैं और किसी कंपनी के लिए ये विभिन्न संख्या में मौजूद रहते हैं. शेयर मार्केट की जानकारी यहाँ पढ़ें.
शेयर के प्रकार (Type of Share)
शेयर को आमतौर पर दो मुख्य भागों में बांटा जाता है. दोनों का संक्षिप्त विवरण नीचे दिया जा रहा है,
- इक्विटी शेयर: जिस तरह के शेयर में डिविडेंड के दर तय नहीं होते और जिसके अंतर्गत कंपनी के AGM में वोटिंग के अधिकार हों, ऐसे शेयर को इक्विटी शेयर कहा जाता है. इस तरह के शेयर अपूरणीय (irredeemable) होते हैं. सभी तरह की देनदारियां समाप्त हो जाने पर कंपनी के वाइंड अप के दौरान शेयर रि-पे कर दिए जाते हैं. इक्विटी शेयर अपने शेयर होल्डर को यह सुविधा देती है कि शेयरहोल्डर अपना लाभ कंपनी में शेयर कर सकेगा.
- प्रेफ़रेंस शेयर: इस तरह के शेयर में किसी तरह का वोटिंग अधिकार नहीं होता है. इसके अंतर्गत डिविडेंड पूरी तरह से फिक्स रहता है. जब पहली बार कोई कंपनी सीधे तौर पर अपने शेयर बेचने की योजना बनाती है तो सबसे पहले ये शेयर प्राइमरी मार्केट में आता है. यहाँ से शेयर ट्रेडिंग सेकेंडरी मार्केट में शुरू हो जाता है. ये पूरणीय (redeemable) होते हैं.
डिबेंचर क्या है (What is Debenture)
डिबेंचर मोटे तौर पर एक लम्बी अवधि का डेब्ट इंस्ट्रूमेंट है. यदि किसी कंपनी को अपना प्रसार करने के लिए अधिक फण्ड की आवश्यकता होती है, और वह कंपनी अपने शेयर होल्डर भी नहीं बढ़ाना चाहती तो वह डिबेंचर जारी करती है. जिसके अंतर्गत कोई भी आम व्यक्ति एक तय समय के लिए कंपनी में पैसे लगा कर एक तय ब्याज दर का लाभ उठा सकता है. डिबेंचर लोगों के लिए उसी प्रक्रिया द्वारा जारी किया जाता है, जिस प्रक्रिया द्वारा कोई कंपनी शेयर जारी करती है. कोई डिबेंचर किसी कंपनी के आम मुहर (कॉमन सील) द्वारा ही जारी की जाती है. डिबेंचर के कुछ मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं,
किस प्रकार के इक्विटी फंड में सबसे कम और किसमें सबसे ज़्यादा जोखिम होता है?
म्युचुअल फंड्स में कैटिगराइजेशन और उनमें मौजूद पोर्टफोलियो के आधार पर कई तरह के जोखिमों की आशंका रहती है। इक्विटी म्युचुअल फंड्स में कई जोखिमों की आशंका रहती है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण है बाजार जोखिम। एक कैटेगरी के तौर पर इक्विटी म्युचुअल फंड्स को 'उच्च जोखिम' निवेश उत्पाद माना जाता है। जबकि सारे इक्विटी फंड्स को बाजार जोखिमों का खतरा रहता है, जोखिम की डिग्री अलग-अलग फंड में अलग-अलग होती है और इक्विटी फंड के प्रकार पर निर्भर करती है।
लार्जकैप फंड्स जो लार्जकैप कंपनी के शेयरों में निवेश करते इक्विटी शेयर के प्रकार हैं यानी अच्छी आर्थिक स्थिति वाली जानी-मानी कंपनियों के शेयरों को सबसे कम जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि इन शेयरों को मिड कैप और छोटी कंपनियों के शेयरों की तुलना में सुरक्षित माना जाता है। कम जोखिम वाले इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में आमतौर पर एक अच्छा डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो होता है जो लार्ज-कैप कैटेगरी के सारे सेक्टरों में फैला होता है। व्यापक-आधारित बाजार सूचकांक पर आधारित इंडेक्स फंड्स और ETF जो निष्क्रिय रणनीति रखते हैं, उन्हें भी कम जोखिम वाला माना जाता है क्योंकि वे डाइवर्सिफाइड बाजार सूचकांकों की नकल करते हैं।
फोकस्ड फंड्स, सेक्टोरल फंड्स और थीमैटिक फंड्स जोखिम स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर होते हैं क्योंकि उनके पास केंद्रित पोर्टफोलियो होता है। उच्च जोखिम वाले इक्विटी फंड्स आमतौर पर एक या दो सेक्टरों तक सीमित अपनी होल्डिंग्स के कारण केंद्रित जोखिम से गुजरते हैं। भले ही फोकस्ड फंड्स जाने-माने लार्ज-कैप शेयरों में निवेश करते हैं, लेकिन उनके पास आमतौर पर सिर्फ 25-30 शेयर होते हैं जो केंद्रित जोखिम को बढ़ाते हैं। अगर फंड मैनेजर का अनुमान सही हो जाता है, तो वह डाइवर्सिफाइड लार्ज-कैप फंड की तुलना में ज़्यादा रिटर्न दे सकता है लेकिन इसका उल्टा भी हो सकता है।
सेक्टोरल फंड्स ऑटो, FMCG या IT जैसे सिंगल सेक्टर के शेयरों में निवेश करते हैं और इसलिए काफ़ी जोखिम उठाते हैं क्योंकि इंडस्ट्री को प्रभावित करने वाली कोई भी अनचाही घटना पोर्टफोलियो के सभी शेयरों पर बुरा प्रभाव डालेगी। थीमैटिक फंड्स कुछ संबंधित इंडस्ट्री के शेयरों में निवेश करते हैं जो फिलहाल मांग में हैं लेकिन लंबी अवधि में आकर्षण खो सकते हैं।
निवेशक आमतौर पर एक आम धारणा रखते हैं कि इक्विटी फंड्स दूसरे फंडों की तुलना में ज़्यादा रिटर्न देते हैं, लेकिन उन्हें यह बात पता होनी चाहिए कि सभी इक्विटी फंड्स एक समान नहीं होते हैं। रिटर्न की संभावनाएं उनके इक्विटी फंड के रिस्क प्रोफाइल के अनुरूप होती हैं। इसलिए इसमें निवेश करने का फैसला लेने से पहले किसी भी केंद्रित जोखिम के लिए सारे सेक्टरों और टॉप होल्डिंग्स में फंड की इक्विटी शेयर के प्रकार विविधता की डिग्री देखें। सबसे कम जोखिम वाले या सबसे ज़्यादा रिटर्न वाले फंड्स देखने के बजाय, आपको ऐसा फंड देखना चाहिए जिसका जोखिम स्तर आप उठा सकते हैं।